Sunday 19 May 2013

मानव


मानव


जिंदगी भर
कांटे बोकर

फूलों की
कामना
करता
यह मानव

कितना बेचारा
असहाय
नज़र आ रहा है

रचता साजिशें
करता घृणा

देखता बुरी नज़रों से
फिर भी

प्रेम की आस में जीता
यह मानव

कितना बेचारा
व असहाय नज़र
आता है

चाहता है
गिराकर
सभी को

पीछे छोड़कर
सभी को

वर्तमान से खेलता

असत्य का दंभ भरता और
उज्जवल भविष्य
की कामना करता
यह मानव

कितना बेचारा व असहाय नज़र आता है

शक्ति व ताकत के परचम तले असहायों पर राज़ करता

अनैतिकता में नैतिकता का रंग भरने
की नाकाम

व असफल कोशिश करता

यह मानव 
कितना बेचारा
व असहाय नज़र आता है

संतुष्टि की चाह में

आये कोई भी राह में रौंदकर

मानव रुपी पुष्प को

अपने जीवन में पुष्प
खिलाने की
नाकाम
कोशिश
करता

यह मानव
कितना बेचारा व असहाय नज़र आता है

मसल कर
दूसरों की
भावनाओं को

जीवन में
दूसरों के
अन्धकार भर

अपने जीवन को
रौशनी से
पूर्ण
करने की
नाकाम
कोशिश
करता

यह मानव
कितना
बेचारा व असहाय नज़र आता है

शक्ति का सदुपयोग
दूसरों के जीवन में
रौशनी
बिखेरना

जिसका सपना
होना था

खुद को
जला
दूसरों के जीवन में
उजाला करना

जिसके जीवन के
उद्देश्य होना था

जहां ये सब
होता

वही मानव होता
वही मानव  होता
वही मानव होता




जब एक बच्चा


जब एक बच्चा

जब एक बच्चा
दुनिया में आता है तो
चारों तरफ लोग
चार होते हैं

जब एक बच्चा रोता है तो
उसे दुलार, प्यार  व चुप कराने वाले
चार होते हैं

पकड़ चलता है
जब अंगुली
तो लोग आसपास
चार होते हैं

उठाकर बस्ता
वो जब जाता है स्कूल
तो आसपास घर के चार होते हैं

स्कूल ने भी
उसके मित्र
चार होते है

बड़ा होता है
जब वो यौवन कि
गली में
किसी से उसके नैन चार होते हैं
इन नैनों कि
गलियों सेव जब वह
गुजरता है तो
आसपास बच्चे चार होते हैं

सोता है जिस
चारपाई
पर वह
उसके पाए भी चार होते हैं

कन्धों पर
करता है जब वो अपने
जीवन की अंतिम सवारी
तो कंधे चार होते हैं

लिटाकर किया जाता है
जहां संस्कार
वहा पर भी कोने चार होते हैं

चार दिनों कि
जिंदगी की ये
कहानी
आदमी की जुबानी

हो सके तो
संभाल
इस जिंदगी को मतलब दे
अर्थ दे
उचित आराम दे
कर्म कर
संयम धर
मानव रह
मानवतापूर्ण
व्यवहार कर
मानव के कल्याण के
हित
विचार कर

जीवन संवार ले
चार दिन
जिंदगी के
अर्थपूर्ण गुजार दे
चार दिन
जिंदगी के
अर्थपूर्ण गुजार दे
चार दिन
जिंदगी के
अर्थपूर्ण गुजार दे