Thursday 23 January 2014

मेरा मन इतना विव्हल क्यों


                              मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
टूटती सब आशायें
बिखरती सब कोमल भावनायें
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
क्यों हुए पाषाण से मन
क्यों लुप्त हईं शुभकामनायें
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
टूटता संयम विलासिता से बंधन
बढ़ रहा व्यभिचार , फैल रहा अलगाववाद
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
असहाय से सब जी रहे हो रहा चरित्र का पतन
अभावग्रस्त हैं मन अवसाद में है तन
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
समाधिस्त हुई सब मोक्ष कामनायें
निराश हुई सब शुभकामनायें
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
अभिनन्दन आदर्शों का होता नहीं है
आधुनिकता प्रेरणा स्त्रोत बन उभरी
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
सत्यम , शिवम् , सुन्दरम अब भाता नहीं है
संस्कारों व संस्कृति पर विचार आत नहीं है
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
प्रजातंत्र अब बन गया है मज़ाक
पंचशील अब किसी को सुहाता नहीं है
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  
निर्जीव सी जी रही सब आत्मायें
अपमान अब किसी से सहा जाता नहीं है
मेरा मन इतना विव्हल क्यों  

शिव स्तुति


शिव स्तुति
भोलेशंकर मनभावन तुम
भावरूप मन को प्यारे तुम
कहे भवेश कहे कोई भूतेश्वर
तुम हो प्रभु भूतों के ईश्वर
भोलेनाथ हो बहुत भोले तुम
हम तो कहैं तुमको भवभंजन
बात निराली , तुम्हारी –ए – भगवन
त्रिशूलधारी , तुम पिनाकधारी
मिटते कष्ट , हमारे क्षण – क्षण
भद्र्कपिल , तुम भोरानाथ हमारे
कष्ट हरो प्रभु मेरे प्यारे
भूतनाथ तुम भूतपति हो
भस्मप्रिय , भालचंद्र तुम्हीं हो
चरणों में है मस्तक मेरा
जीवन में तुम करो सवेरा
भूतात्मा हो भूतवाहन हो तुम
त्रिलोचन हो , भाललोचन हो तुम
भृंगी , भोलानाथ, त्रिशूली
त्रिजट , त्रिचक्षु , शंकर हो तुम
महिमा तुम्हारी अपरम्पार
शिव करो मेरी  नैया पार
त्र्नेत्र , त्र्यम्बक , भूतवाहन तुम
खिल जायें सबके तन – मन
करते शिव हम तेरा वंदन
करो उद्धार , हे देव पावन
हम करैं पुष्प तुम्हें अर्पण
जीवन मेरा आप को अर्पण
जीवन मेरा आप को अर्पण
जीवन मेरा आप को अर्पण       

हमने मन में क्यों ये पाला


हमने मन में क्यों ये पाला
हमने मन में क्यों ये पाला
धरती पर केवल अंधियारा

अन्धियारा  मन में बसता  है
अंधविश्वास से ये कसता है

मन का ये अंधियारा क्या है
उजियारे का ये दुश्मन क्यों है

आगे बढ़ने से हमको रोके
श्रेष्ठ आचरण को ये टोके

जीवन की ये बात करे न
मृत्यु से ये नाता रखे

सही विचार मन में न आने दे
कुविचार ,पथ प्रेरक ये

इस विचार से मुक्ति पाना है
हमको सत्य मार्ग पर जाना है

कुछ ऐसा हम मन में डालें
आओ हम मन में ज्योत जलायें

अन्धियारे से लड़ना सीखें
कर्म धरा पर हम भागें

सोचें केवल हम सत्य को
सत्य को ही आदर्श बना लें

मन को मार त्याग अपनायें
जीवन को हम सार्थक पायें

हम ये मानें हम ये जानें
मन के हारे हार है मन के जीते जीत

रजनीश


रजनीश
रजनीश रात्रि का देव बना
खिलता दूर गगन पर
करता पुष्ट धरा पर जीवन
जीवन दे प्रकृति को
मुस्कुराता दूर आसमां पर
हम उसे पुकारें मयंक, निशाकर
दिन का तारा दूर गगन पर
खिलता बन वो लाल गेंद सा
कहलाता वो सूरज, रवि, सविता
दिनकर , प्रभाकर , भास्कर , दिवाकर
करता दूर अन्धेरा , देता हमको उजियारा
देता प्रकाश उर जीवन में आदित्य कहलाता
बादलों का निर्माण करे यह करे वाष्प निर्माण
वायु जीवन बन खिलती है
हर प्राणी को जीवन देती है
मंद पवन प्रकृति मुस्काये
मानव हर पल जेवण पाए
वायु बिन संभव न जीवन
वायु , पवन , वात कहलाये
और कहाए मरूत , अनिल और कहाए समीर
पृथ्वी की तुम बात न पूछो
गर्भ में इसके क्या है यह न पूछो
सत्य अनके इसके गर्भ में
बाहर आने को व्याकुल हैं
बोझ पूरे ब्रम्हांड का ढोती
स्वयं व्याकुल जीवन को रोती
जीवन पुष्प इसी पर खिलते
तुम धरणी हो तुम वसुंधरा
तुम अचला तुम धरती कहलाती
दुनिया के सब चर्चे तुमसे
महान व्यक्तित्व सब तुम पर जन्मे
आविष्कार सभी तुम पर पलते हैं
अनुपम  प्रकृति से तुम अलंकृत
हिम पर्वत तुम्हारी रौनक
पाप अधर्म से दबी हुई तुम
जीवन जीवन जीवन करतीं
प्रेम स्नेह की तुम्हें जरूरत
अवच्छ विचारों की तुमको चाहत
तुम हंस दो खिल जाए जीवन
तुम जो हिलो तो तड़पे जीवन
हमको तुमसे आस बहुत है
शायद तुममे सांस बहुत है
वायु, चन्द्र , अग्नि पृथ्वी को
और आसमां को है चाहिए
मानव की सहिष्णुता और ढेर सा प्यार
प्रकृति के हम ना हों शत्रु
मिलकर हम सब इसे संवारें
इन सबसे हम जीवन पाते
क्यों हम इन्हें नहीं अपनाते
आओ हम ये शपथ उठायें
अनके बचाव में कुछ कदम बढ़ायें