Sunday 30 November 2014

स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम


स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम


स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
फरेबियों से बच कर रहना , दुर्बलता का त्याग करो तुम


पंकज से तुम पावन रहना , सत्य राह निर्बाध बढ़ो तुम
कर्म राह आदर्श हो तेरा , तपस्वी सा जीवन जियो तुम


बाधाओं से मत घबराना, स्वयं पर विश्वास करो तुम
गरिमामय हो छवि तुम्हारी , रत्नाकर सा ह्रदय विशाल बनो तुम


मनभावन हो रूप तुम्हारा , स्वयं से प्यार करो तुम
अहंकार तुझको न घेरे , ऐसे सुप्रयास करो तुम


मर्यादित जीवन हो तेरा , ऐसे कुछ आदर्श वरो तुम
आकर्षक व्यक्तित्व हो तेरा , ऐसे संस्कारित बनो तुम


धर्मानुकूल आचरण हो तेरा , ऐसे सन्यासी बनो तुम
अभिनन्दन हर जगह हो तेरा , ऐसे व्यक्तित्व बनो तुम


प्रभु भक्ति में जीवन बीते , सर्वश्रेष्ठ भक्त बनो तुम
नैतिकता हो राह तुम्हारी , ऐसे उत्तम चरित्र बनो तुम


स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
फरेबियों से बच कर रहना , दुर्बलता का त्याग करो तुम


दुर्लभ हुईं सात्विक विचारों की श्रृंखला


दुर्लभ हुईं सात्विक विचारों की श्रृंखला 
 
दुर्लभ हुईं सात्विक विचारों की श्रृंखला
सामान्य हुईं सात्विक विचारों भयावहता 
 
नज़र अब नहीं आतीं संवेदना और भावुकता
लज्जित कर रही काम पूर्ण मानसिकता 
 
अस्तित्व को टटोलते संस्कृति व संस्कार
दिखाई नहीं देती अब विचारों की मौलिकता 
 
हो रहे सभी चरित्र हास्यास्पद
टटोलते एक दुसरे के भीतर की सहृदयता 
 
क्यों झेल रहे हम आदर्शों की नाटकीयता
कब तक रोएगी अपने अस्तित्व पर आस्तिकता 
 
दिन – दूनी , रात – चौगुनी विकसित होतीं विचारों की कुटिलता
सामाजिकता में ढूँढता हर एक चरित्र अवसरवादिता 
 
कैसी है ये रिश्तों को ढोने की अनिवार्यता
स्वाधीन होकर भी ढो रहे आधुनिक विचारों की पराधीनता 
 
कैसा येबहाव , कैसी ये दुर्बलता
कैसा ये गंवारूपन , कैसी ये राष्ट्रीयता 
 
हम न रहे मर्यादित , न मन में पल रही भावुकता
न विचारों की अनुकूलता , न सादगी में एकरूपता 
 
दुर्लभ हुई सात्विक विचारों की श्रृंखला
सामान्य हुईं सात्विक विचारों भयावहता




मेरे मौला – मेरे मौला


मेरे मौला – मेरे मौला


रोशन हो जाए हर एक शख्स मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
रोशन फिजां महके , तेरा नूर महके मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
तसव्वुर में भी तेरा दीदार महक उठे मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
तेरी रहमत तेरा करम हो सब पर मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
तोहफा – ए – इबादत सबको अता कर मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
खिले हर एक शख्स तेरे नूर से मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
नफरत की दीवार मिटा दे मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
क़ुबूल है तेरा हर एक करम मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
नासमझ हैं हम , माफ़ कर हमको मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
परवरिश करना अपना समझ कर हमको मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
फ़साना न हो जायें हम , संभाल लेना हमको मेरे 
मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
तुझ पर हमारा एतबार बरकरार रहे मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
तेरे दर पर आये हैं तेरे दीदार को मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
बंदगी क़ुबूल करना , रहम करना मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
आदिल है तू, नूर बख्श हमको मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
जुबां पर सुबह – शाम नाम हो तेरा मेरे मुओला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
रोशन हो जाए हर एक शख्स मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला 
 
रोशन फिजां महके , तेरा नूर महके मेरे मौला
मेरे मौला – मेरे मौला


चलो संगीत की महफ़िल सजाएं


चलो संगीत की महफ़िल सजाएं 
 
चलो संगीत की महफ़िल सजाएं
खुदा को ज़मीन पर बुलाएं 
 
संगीत से रोशन हों सभी दिल
आओ महफ़िल में सबको बुलाएं


संगीत से रोशन ज़मीन ये
संगीत से रोशन आसमान 
 
चलो इबादत के गीत गायें
खुदा को अपने करीब बुलाएं


संगीत जीवन की हरियाली
महके जीवन की हर एक डाली 
 
संगीत पूर्ण जीवन जियें हम
प्रकृति को रोशन करें हम


संगीत की पावनता को जानो
इसके हर एक मर्म को पहचानो 
 
संगीत से जीवन है खिलता
पाथिक मार्ग है नहीं भटकता


संगीत से सपने सजाओ
चलो इबादत के गीत गाओ 
 
चीर अंधकार को जीवन से
संगीत की महफ़िल सजाओ


चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें


चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें


चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें
चलो किसी नवजात को मुस्कुराना सिखाएं 
 
आम के बागों में घूमकर , डालियों को झूला बनायें
चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें


चलो उपवन के पुष्पों से नया रिश्ता बनायें
इस चमन को फूलों की खुशबू से महकाएं 
 
चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें


किसी माँ से पूछें उसके शिशु के रूठने की वजह
चलो उस नन्हे शिशु को हंसना सिखाएं 
 
चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें


दूर सीमा पर किसी प्रहरी से मिल कर आयें
उसे उसकी प्रेयसी का सन्देश सुनाएँ 
 
चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें


भूख से बिलख रही एक नन्ही सी परी
चलो उस नन्ही परी को चुप करा आयें 
 
चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें


चलो किसी गिरते को उठना सिखायें
चलो किसी रोते को हंसना सिखायें 
 
चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें


चलो किसी देवालय में माथा टेक आयें
चलो किसी भूखे को खाना खिला आयें 
 
चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें


दिखता नहीं दिलों में देश प्रेम का जज्बा
चलो लोगों के दिलों में देश प्रेम की भावना जगा 
आयें 
 
चलो एक बार फिर से ख़ुशी के गीत गायें




ईश्वर से साक्षात्कार कराता है संगीत


ईश्वर से साक्षात्कार कराता है संगीत


ईश्वर से साक्षात्कार कराता है संगीत
ख़ुदा की इबादत सिखाता है संगीत 
 
दिल के कोने में जब गुनगुनाता है संगीत
स्वयं का खुदा से परिचय कराता है संगीत


कहीं माँ की लोरियों में गुनगुनाता है संगीत
कहीं कृष्ण की बांसुरी में भाता है संगीत 
 
गायों की गले की घंटी से जन्म लेता संगीत
कहीं बैलगाड़ी की घंटियों से उपजता संगीत


कहीं प्रेयसी को प्रेमी से मिलाता संगीत
कहीं नवजात को मुस्कुराना सिखाता है संगीत 
 
संगीत का स्वयं से स्वयं का परिचय नहीं
लोगों के सोये भाग्य जगाता है संगीत


बंज़र में भी फूल खिलाता है संगीत
उदास चेहरे पर मुस्कान जगाता है संगीत 
 
कहीं खुदा की इबादत हो जाता है संगीत
कहीं कुरआन की आयत , गीता के श्लोक हो जाता है 
संगीत


कहीं दूर चरवाहे के दिल में बसता संगीत
कहीं पंक्षियों के कलरव से उपजता संगीत 
 
संगीत की कोई सीमा नहीं होती
धरती के कण – कण में बसता है संगीत




हमने देखा है हिमालय को टूटते


हमने देखा है हिमालय को टूटते 
 
हमने देखा है हिमालय को टूटते 
 
सुनी है उसकी अन्तरात्मा की टीस 
 
स्वयं के अस्तित्व को टटोलता 
 
 मानव मन को टोहता 
 
सहज अनुभूतियों के झिलमिलाते रंग फीके पड़ते 
 
एक नई सहर की दास्ताँ लिए 
 
समय के साथ संवाद करता 
 
कहीं दूर आशा की किरण के साथ 
 
फिर से पंखों पर उड़ने को बेताब 
 
 हमने देखा है हिमालय को टूटते 
 
अस्तित्व खोता विशाल बरगद जिस तरह 
 
अंतिम पड़ाव पर स्वयं के जीवन के 
 
मानव मन की भयावह तस्वीर पर 
 
चीख – चीखकर पूछ रहा हिमालय 
 
हे मानव तुम कब जागोगे 
 
क्या मैं जब मिट जाऊंगा , तब जागोगे 
 
प्रकृति से ही जन्मा मानव 
 
स्वयं को प्रकृति से भिन्न 
 
समझने की 
 
स्वयं की इच्छाओं से बंधा मानव 
 
स्वयं की इच्छाओं के अनियंत्रित प्रमाद में 
 
प्रकृति को रौंदता अविराम 
 
प्रकृति ने हम शिशुपालों को 
 
सदियों किया माफ़ 
 
अंत समय जब पाप का घड़ा भरा 
 
मानव अपने अस्तित्व को तरसता 
 
स्वयं के द्वारा मर्यादाओं की टीस झेलता 
 
हिमालय , बर्फ्र रहित बेजान पत्थरों – पहाड़ियों का 

समूह न होकर 
 
 प्रकृति निकल पड़ी है तलाश में 
 
स्वयं के अस्तित्व को गर्त में जाने से बचाने 
 
चिंचित है प्रकृति , हिमालय के अस्तित्व को लेकर 
 
हिमालय कहीं खो गया है 
 
महाकवि कालिदास की रचना 
 
ऋतुसंहार से उपजी हिमालय की अद्भुत गाथा 
 
कालिदास कृत कुमार संभव में हुआ हिमालय का गुणगान
 
विविधताओं से परिपूर्ण हिमालय 
 
भारत का ह्रदय , भारत का जीवनदाता , पालनहार 

हिमालय 
 
पर्यावरण संरक्षण रुपी संस्कृति वा संस्कारों की बाट

 जोहता हिमालय 
 
स्वयम के अस्तित्व को मानव अस्तित्व से जोड़कर 

देखता हिमालय
 
बार – बार यही चिंतन करता 
 
 क्या जागेगा मानव और जागेगा तो कब 
 
क्या मानव मेरे अस्तित्व हित स्वयं के हित का प्रयास 

करेगा
 
और यदि ऐसा नहीं हुआ तो 
 
हिमालय और मानव किस गति को प्राप्त होंगे 
 
क्या इसके प्रतिफल स्वरूप होगा 
 
एक सभ्यता का विनाश 
 
एक सभ्यता का विनाश 
 
एक सभ्यता का विनाश