Friday 30 October 2015

पिए जा रहे हैं ग़मों का समंदर


पिए जा रहे हैं गमों का समंदर . ये मंज़र बयाँ करें कैसे

पिए जा रहे हैं ग॒मों का समंदर , ये मंज़र बयाँ करें कैसे
मुस्कराहटों के समंदर से ये महफ़िल्र रोशन हो जाए तो अच्छा हो

तार--तार होते रिश्तों से .पट गई है ये दुनिया
रिश्तों की फिर एक नई सुबह .रोशन हो जाए तो अच्छा हो

कोमल फूलों को मसलते .ये आवारा चरित्रों की दुनिया
संस्कार और आदर्श ,जीवन की धरोहर हो जाएँ तो अच्छा हो

होटलों , पबों की भेंट चढ़तीं ये आज की जवानियाँ
मंदिरों, मस्जिदों. गुरुद्वारों और चर्चो के दर की रौनक हो जाएँ तो अच्छा हो

सिसकती आहों का , यौनाचार के घावों का साथ लिए गुजरता बचपन
घर ऑगन हो ये, पुष्प सा खिल जाएँ तो अच्छा हो

किसी को अजनबी कहें या कहें अपना, तो कैसे
जिन्दगी में विश्वास की मिठास घुल जाए तो अच्छा हो

बिखर गए हैं मोती उनकी आँखों के. दिल में पीड़ा हैं लिए
जिन्दगी उनकी भी खुशनुमा बयार हो जाए तो अच्छा हो

उनकी खूबसूरती , उनका यौवन उनके लिए हो रहा अभिशाप
लोगों के दिल में उनके लिए प्यार भरा एहसास जाग जाए तो अच्छा हो







फूलों को शाख पर खिलने दो


फूलों को शाख पर खिलने दो

फूलों को शाख पर खिलने दो
फूलों को खुशबू बिखेरने दो

हवा को मंद मंद बहने दो
सपनों को आसमां छूने दो
फूलों को शाख से न तोड़ो

फूलों की खुशबू से फिज़ां को महकने दो
पवन को प्राणवायु कर दो

जीवन को चहकने दो
सपनों को सीमा में न बांधो
जीवन को उत्कर्ष राह पर बढ़ने दो

आधुनिकता के बंधन में न बंधो
संस्कारों को पुष्पित होने दो

मत छीनो नन्हे हाथों से खिलाँने
ऑगन को नन्है--नन्हे फूलों से महकने दो

क्या हुआ जो न छू पाए आसमां तुम
कोशिशों की नाव पर खुद को उतरने दो

चीरकर हवाओं का सीना
प्रयासों को मंजिल छूने दो






खिताबों से मुझको न नवाज़ो यारों

खिताबों से मुझको न नवाजो यारों

खिताबों से मुझको न नवाजो यारों
पलकों पर मुझको न सजाओ यारों

जीतना चाहता हूँ मैं खुद को
अभिमानी मुझको न बनाओ यारों

खिलने दो . फूलों सा महकने दो मुझको
सच की राह से मुझकों न भटकाओ यारों

सद्विचारों की गंगा बहानी है मुझको
फ़लक  से ज़मीं पर मुझको न गिराओ यारों

इम्तिहां जिन्दगी के अभी और हैं बाकी
इमारत आदर्शों की न ढहाओ यारों

इंसानियत की राह पर बढ़ने दो मुझे
इरादे से मेरे मुझको न भटकाओ यारों

उम्मीदों पर सबकी खरा उतरना है मुझको
मंजिल से मुझको न डिगाओ यारों

कायल हूँ मैं उसका , उस पर एतबार है मुझको
खुदा की राह से मुझे न बहकाओ यारों







Thursday 29 October 2015

प्यार की नज़र से

प्यार की नज़र से

प्यार की नज़र से तुमने जो देखा मुझको , नजरैं सब कुछ बयाँ कर देंगी
छू लिया जो तुमने दुपट्टा मेरा , मेरी साँसें तेरी साँसों का आलिंगन होंगी

मेरी चाहत को तुमने अपनी चाहत समझा , पूरी हो गयी तमन्ना मेरी
इश्क के अंजाम की परवाह नहीं मुझको, इश्क पर कुर्बान जिन्दगी मेरी

इश्क के दुश्मनों से जाकर कह दो. इश्क कायरों की किस्मत में नहीं होता.
होता है इश्क उन मुहब्बत के चाहने वालों को , इकबाल जिनका बुलंद होता

इश्क को खुदा की इबादत समझ जी रहे हैं हम
इश्क गर खुदा न होता, तो खुदा भी खुदा न होता

कायदे इश्क के कुबूल हैं हमें , इबादते--खुदा की मानिंद
किस्मत को न रोते, गर इकबाल मेरा बुलंद होता

वफ़ा की आस में, खिदमते--इश्क कर रहे थे हम,
कुसूर उनका नहीं था, खामोश जुबां ने उनको सहारा जो दिया होता

गवारा है मुझे इश्क का हर उसूल और आकिबत  ( परिणाम )
इश्क में ख्वाहिशों के समंदर का सिरा नहीं होता

अश्फाक ( कृपा) उस खुदा की , जिसने इश्क का आगाज़ किया
गर इश्क इस दुनिया में न होता , ये जहां जीने के काबिल न होता





Tuesday 27 October 2015

अनचाही भावनाओं के बोझ तले दबे जा रहे हैं हम - मुक्तक

१.


इश्क हो जाएगा इस नदियों, जंगलों,
जीवों, पहाड़ों और झरनों से

एक बार इन प्रकृति की वादियों को
मन की आँखों स॑ निहारकर तो देख


२.


इत्तफाक भी इत्तफाकन जिन्दगी का
हिस्सा नहीं होते

इश्क हमारी जिन्दगी में य॑ ही
मुहब्बत के रस नहीं घोलते

3.


अनचाही भावनाओं के बोझ तले दबे
जा रहे हैं हम

यूं ही एक दूसरे को गुमराह किये जा
रहे हैं हम

4.

आधुनिक विचारों के गुलाम होते जा
रहे हैं हम

ये. किस  मुकाम की तलाश किये जा
रहे हैं हम

5.


इश्के  -इबादत नैमत खुदा की ठुकरा
रहे हैं हम  

नायब जिन्दगी को मोबाइल, इंटरनेट
की भेंट चढ़ा रहे हैं हम

६.


चश्मों - चिराग उस खुदा के हो
जायेंगे हम

-इंबादत को गर इमाने - मजहब
बनायेंगे हम


7.

आतंक को मुजाहिद के नाम का
अमलीजामा पहना रहे हैं जो

अफ़ेसोस हो रहा मुझे 
उनकी तालीम पर



आओ पिया मेरे साजन आओ


आओ पिया मेरे साजन आओ

आओ पिया मेरे साजन आओ , इबादत की पिया सरिता बहाओ
अलीम है तू . तुझसे रोशन है जहां , इबादत को जीने का जरिया बनाओ

चश्मों -चिराग हो जाएँ तेरे करम से, इबादत की शम्मा जलाओ
नियें तो एक तेरे नाम से मेरे पिया, इंसानियत की खुशबू महकाओ

काफिये लिख सकूं मैं तेरे हुज्नूर में मेरे मौला. बंदगी की शम्मा जलाओ
खिदमत में बन्दों की गुजरे मेरी सुबह और शाम, ऐसे मेरे भाग्य  जगाओ

गुजारिश तुमसे मेरे पिया मुझे गुमनाम न करना, ख्वाहिशों के गुलिस्तां को महकाओ
गुल्शन का फूल बन उपवन को करूँ रोशन, जन्नत सी मेरी किस्मत सजाओ

ख्वाहिशों की शम्मा रोशन हो मेरे पिया, अपने करम का जलवा दिखाओ
एहसास तेरे नाम का मेरी जिन्दगी को करे रोशन. मुझको इस काबिल्र बनाओ

तेरी इबादत मेरी जिन्दगी का सबब. इबादत की खुशबू से मुझको महकाओ
अपनी आगोश में . अपनी पनाह में ले लो, अपने करम से मेरा आशियों महकाओ

मेरी जायज ख्वाहिशों क्ने अंजाम मिले, अपने करम से मेरी जिन्दगी महकाओ
इस जहां में समी का मुझको प्यार मिल्रे, ऐसे मेरे नसीब जगाओ

जिक्र तेरे करम का क्या करूँ मात्रा. मेरी कलम पर अपनी अता फरमाओ
ठिकाना कर सकूं तेरे दर को अपना, अपने करम से मुझको इस काबिल बनाओ




लगता है मेरे स्वप्न को

लगता है मेरे स्वप्न को

लगता है
 मेरे स्वप्न को
आसमां का मिलेगा सहारा

लगता है
उस पंक्षी को
प्यास से मिलेगी निजात
लगता है
केवल दो बूँद जल
होगा
जीवन का पर्याय

आत्मा को कचोटती
रातों से
उस वैश्या को
मिलेगी मुक्ति

लगता है प्रकृति
आनंद से
प्रफुल्लित हो
स्वयं को गर्वित
करेगी महसूस एक दिन

लगता है
भीगे चने के दाने
फिर से
शारीरिक ऊर्जा का
स्रोत होंगे

लगता है
फिर से
पावन होकर
इठलाएंगी नदियाँ

लगता है
मानसिक कुपोषण
पर लग रहा ग्रहण
एक दिन
सुसंस्कृत विचारों से
पोषित करेगा
मानव को , इस युवा पीढ़ी को

लगता है
भोर फिर से
पक्षियों की चहचहाहट से
खुद को
करेगा रोशन

लगता है
विदेशों में
बस रही
युवा पीढ़ी को
सताएगी
एक दिन
माँ की याद

लगता है
इन चीरहरण के
अनैतिक  दौर से
मिलेगी निजात

लगता है
मानव को
मानव होने का शीघ्र ही
होगा आभास

लगता है
शीघ्र ही होगा
यह सब कुछ
शीघ्र ही ................

  

Thursday 15 October 2015

चंद रातों से आई मुझको नींद नहीं

चंद रातों से आई मुझको नींद नहीं

चंद रातों से आई मुझको नींद नहीं
लगता है बरसों से हुई उनसे मुलाक़ात नहीं
लम्हा लम्हा उसके दीदार की आरजू है लिए
बेकरारी का ये आलम उनको आया रास नहीं

किताबों को बनाया था जरिया भेजने को खत
जाने हुआ क्‍या ख़त का जवाब आया नहीं
बफ़ा की आरज़ू त्िए जी रहा हूँ मैं
उन्हें मेरा अंदाज़े मुहब्बत रास आया नहीं

उन्हें मुझसे वफ़ा की आरज़ू कोई खता की बात नहीं
मुहब्बत के दुश्मनों को हमारा प्यार आया रास नहीं
मेरी आरज़ू थी उनकी रातों को कहूं अपना
समाज के ठेकेदारों को हमारा साथ आया नहीं

वो समझते थे मुहब्बत को पैसे वालों का शगल
हम मुहब्बत के चाहने वालों का दुनिया को आया ख्यात्र नहीं
जीते जी न मिल सके तो मात को किया सजदा
हमारी मुहब्बत की इस सलामी पर हुआ किसी को नाज़ नहीं


Monday 12 October 2015

आदिल था वो जो देश पर एवं अन्य एहसास - मुक्तक

१.


आदिल था वो जो
मर मिटा देश की खातिर 

वरना आज  भी देश में 
जयचंदों की कमी नहीं

२.
इन कार करके उन्होंने हमसे 
पीछा तो छड़ा लिया

पर हमारी यादों ने
उनका पीछा नहीं छोड़ा

3.


इबादत खुदा की करो 
मुहब्बत इश्क़ से करो 

प्यार का जो मिल जाये सहारा
उसे खुदा की नेमत समझो

4.


उनकी नजाकत के हम 
कायल हो गए 
उन्होंने मुस्कराकर जो देखा 
हम घायल हो गए





दीवाना बना दिया है हमें उसके हुस्न ने एवं अन्य एहसास - मुक्तक

१.


दीवाना बना दिया है 
उसके हुस्न ने 

बाकी की काम
उसकी निगाहों ने कर दिया


२.


अजीज थे वो मेरे 
अजनबी न थे 

मेरी स्याह रातें 
रोशन हुईं उनके फजल से 


3.

कुछ ऐसा असर हुआ 
महंगाई का हम पर 

पहले चला करते थे साइकिल पर 
अब कारों में दौड़ते हैं हम 


4.


आँचल छुपा लिया उन्होंने 
इस डर से अपनी आगोश में 


कहीं घूर न लें दो आँखें 
जिन्हें हम अपना समझ रहे 




Sunday 11 October 2015

तुम गैरों की महफिल के मेहमान हुए ही क्यों एवं अन्य एहसास

म गैरों की महफ़िल के मेहमान ए ही क्यों
हमारी रुसवाई का इरादा लिए , वहाँ गए ही क्यों
नाउम्मीद होना ही था , गैरों की महफ़िल्र का रुख
किया ही क्यों
बेआबरू हो लिए उनसे , अब हमसे आकर मिलते
नहीं हो क्यों



गुलबदन तुम्हारी खूबसूरती ने
गुलशन की रोशन कर वियाजी
ये तुम्हारी निगाहों का कुसूर
या तुम्हारे हुस्न का ज़माल, जिसने हमें
तुम्हारा दीवाना कर दिया



गुमां न करो अपने नाम पर, अपने
रुतबे पर
कहीं ऐसा न हो एक दिन ,गुमनाम दो
जाओ तुम



पतंग आसमां छु रही थी
कुछ अजब मिजाज़ से
डोर क्या कटी
पतंग के होश उड़ गए







हे हिमालय

हे हिमालय

हे हिमालय हे पर्वतों के राजा
तुम्हारी सीमायें कोई लांघ न पाता

हे गिरिराज , हे नभराज
तुम्हारी महिमा हर कोई गाता
 
हे नगपति , हे पर्वतराज
गंगे ने अस्तित्व तुमसे पाया

हे नगाधिप , हे हिमाचल
विस्तृत व्यापक तेरा आँचल

हे हिमालय , हे हिम देव
हिम को तुमने मस्तक पर धारा

शिव को हो तुम सबसे प्यारे
विश्व धरा पर सबसे न्यारे

करते रक्षा तुम सीमा की
हे शैलराज , हे पर्वतराज

अम्बुद हिम बरसाए तुम पर
हर्ष से तुम खिल जाते महीधर

ऊंचा रहे मस्तक तुम्हारा
हे सुरसरिता के जीवनदाता

हे हिमालय हे पर्वतों के राजा
तुम्हारी सीमायें कोई लांघ न पाता

हे गिरिराज , हे नभराज
तुम्हारी महिमा हर कोई गाता 





Sunday 4 October 2015

मैं जहाँ से भी गुजरूँ , तेरी कायनात साथ - साथ चले

मैं जहाँ से भी गुजरूँ , तेरी कायनात
साथ -साथ चले
मैं जिसे भी देखूं, तेरा शक नज़र आये
मुझे



चार कंधों का सहारा नसीब करना मुझे
मेरे मौला
मेरी ख्वाहिश है जब मैं इस जहां से
चलूँ, तेरा एहसास मेरे साथ चले



खुदा के नाम के एहसास को अपनी
..... दॉलत बनाकर देखो
जीते जी जन्नत का एहसास करो उस
खुदा के करम से



इस जहां मैं किस पर एतबार करूँ और
किस पर न करूँ ऐ मौला
अपने बन्दों से रूबरू करा मुझको मेरे
मौला



किस्सा न हो जाए जिन्दगी ,
पाकीजगी अता कर जिन्दगी को मेरी
एक तेरे नूर से रोशन हो शख्सियत
खुदाया मेरी

दो पल की जिन्दगी

दो पल की जिन्दगी , उस आसमां के चाँद
की मानिंद हो जाए
कुछ प्रयास हों हमारे, कुछ उस खुदा का
करम



हम खिलें तो कुछ ऐसे, कि सारा जहां
रोशन हो जाए
कुछ मैं लिखूं , कुछ तुम लिखो ,
दुनिया खुदा के नोम की इबारत हो
जाए



मेरी ख्वाहिश है तू मुझे समझे , अपने
दर कों चिराग
कुछ रोशन हो इबादत मेरी, कुछ तेरे
करम का असर



लोग यूं ही नहीं , तेरे करम के
मौहताज़ ऐ मेरे खुदा
तेरे बन्दों को नेकी की राह और इश्के -
इबादत अता कर मौला

Saturday 3 October 2015

आंसुओं की गंगा बह जाने दो , दिल की पीर कम हो जाने दो

आंसुओं की गंगा , बह जाने दो

आंसुओं की गंगा , बह जाने दो
दिल की पीर , कम हो जाने दो

अंकुश न लगाओं , मेरे शब्दों पर
विचारों की गंगा . बह जाने दो

देख रखे थे ख़्वाब , जो मैंने बचपन में
इन ख्वाबों को , साकार हो जाने दो

तिलांजलि दे दी मैंने , कर्महीनता को
अब तो मुझे . कर्मप्रिय हो जाने दो

अनुकरणीय बहुत से चरित्र, हैं इस धरा पर
मुझे भी आदर्शो की , गंगा बहाने दो

बहुत जी लिए मैंने , उतार के क्षण
अब तो मुझे , उत्कर्ष राह पर जानें दो

जीवन भर ढोता रहा. मैं अभाव के क्षण
कुछ पल के लिए मुझे . खुशियों में डूब जाने दो

जी रहा था अभी तक , मैं खुद के लिए
अब तो मुझे दूसरों के लिए , मर जाने दो

बहुत जी लिए मैंने, अंधेरों भरे क्षण
मुझे भी उजालों तले . जीवन पाने दो

जिन्दगी अहं का साथ लिए , गुजरे बरसों
अब तो मुझे स्वाभिमानी , हो जाने दो

इस लोक की हम , बताएं क्या तुम्हें
मेरा भी परलोक . सुधर जाने दो

दुर्गुणों से भरा , जीवन जिया मैंने
अब तो सच की राह पर , बलि  हो जाने दो