Monday 18 December 2017

एक अदद चाँद की ख्वाहिश लिए (ग़ज़ल)

'एक अदद चाँद की ख्वाहिश लिए (ग़ज़ल)

'एक अदद चाँद की ख्वाहिश लिए जी रहा हूँ मैं , यूं ही नहीं
कोशिशों के समंदर में पल - पल खुद को डुबो रहा हूँ मैं,यूंही
नहीं

आरज़ू उस चाँद को ज़मीं पर लाने की कर रहा हूँ मैं , यूं ही नहीं
हर एक आशियाँ, हर एक आँगन हो रोशन , ये आरज़ू , यूं ही नहीं

खुदा के हर एक बन्दे में, उस खुदा के दीदार की आरज़ू, यूं ही
नहीं
हर एक शख्स को तू फ़रिश्ता कर मेरे मौला, मेरी ये इबादत, यूं
ही नहीं

सी सकूं ज़ख्म औरों के , उनके ग़मों को अपना कर लूं , ये
आरज़ू, यूं ही नहीं
हर एक इन्साफ पसंद के दर पर रोशन हो एक चाँद, ये आरज़ू
यूं ही नहीं

पालता हूँ अपने सीने में ज़ख्म, औरों के , यूं ही नहीं
अपने आंसुओं से सींच रहा हूँ मैं अपनी कलम को , यूं ही नहीं

'एक अदद खुले आसमां की चाहत मेरी, ये आरज़ू, यूं ही नहीं
नन्हे लबों पर एक नन्ही  सी मुस्कान ला सकूं , ये आरज़ू: यूं ही
नहीं

बिताये थे अभावों  में जिन्दगी के वो पल, यूं ही नहीं
अपने प्रयासों , अपनी कोशिशों को अपने संघर्ष के लहू सींच रहा
हूँ. यूं ही नहीं

अपनी हर एक सांस से इस गुलशन को रोशन करने की आरज़ू,
यूं ही नहीं
चार कदम, किसी राही का हमसफ़र हो सकूं ये आरज़ू . यूं ही
नहीं

'किसी के लबों पर गीत या ग़ज़ल बन रोशन हो जाऊं ये एहसास,
यूं ही नहीं
“उस” जहां में भी “अंजुम ” उस खुदा के दर का चराग हो रोशन
होने की आरज़ू, यूं ही नहीं







ये जिन्दगी है चार पल की

ये जिन्दगी है चार पल  की

ये जिन्दगी है चार पल  की
प्यार से गुजार दो

हो सके तो प्यार दो
हो सके तो प्यार लो

किसी को अपना लो
किसी के हो जाओ

गीत मुहब्बत के
गुनगुनाते जाओ

किसी के गम को
हो सके तो अपना लो

किसी की राहों में
हो सके तो फूल बिछा दो

किसी के गम में
खुद को शामिल्र करो

किसी को अपनी ख़ुशी का
हिस्सा बना लो

खुदा की राह में
हो सके तो कुछ पल  गुजार लो

किसी के हो जाओ
किसी को अपना लो

खुदा की राह में भी
लिखों कुछ गीत
हो सके तो
उस खुदा के हो जाओ

'चाक दामन , पाक रिश्ते
हर शख्स में खुदा को ढूंढ

'चंद आशार ( अश'आर )  ही सही
उस खुदा की तारीफ मैं लिख जाओ

किसी के होठों की
मुस्कराहट हो जाओ

किसी के दर्द में
उसका हमसफर हो जाओ

हो सके तो
गर्म के पूँट पी लो

हो सके तो
खुशियों का समंदर सजा दो

खिला दो कुछ फूल
इस जहां में खुशियों के

गीत  सुहब्बत के
हो सके तो गुनगुनाओ

भूल जाओ कभी
गिरे थे तुम भी.

हो सके तो
किसी का सहारा हो जाओ

आसमां को छू लो
या आसमां को ज़र्मी पर ले आओ

रिश्तों की मर्यादा कायम रखो
रिश्तों को अपना लो

ये जिन्दगी है चार पल  की
प्यार से गुजार दो

हो सके तो प्यार दो
हो सके तो प्यार लो

किसी को अपना लो
किसी के हो जाओ





मन की वीणा के तार सजाओ

मन की वीणा के तार सजाओ

मन की वीणा के तार सजाओ
मन को सुन्दर भवन बनाओ

मन की व्याकुलता को जानो
इसमें सुर सरिता के पुष्प खिलाओ

सुर सरिता के तार सजाओ.
मन को सुर संगीत से सजाओ

गीतों की एक माला पिरोकर
जीवन को सुर सरिता में बहाओ 

गीतों का एक महल सजाओ
बीणा बादिनी का आसन सजाओ

जीवन का हर पल संगीतमय
पुण्य धरा पर पुष्प खिलाओ

सुर की देवी के चरणों में
पावन गीतों का शौग लगाओ

मन , अंतर्मन हो जाए पावन
संगीत का एक गुलशन सजाओ

मन हो पावन , तन हो पावन
सुर सरिता में हर पल नहाओ

जीवन का कण - कण हो जाए प्रफुल्लित 
सुर सरिता की महफ़िल सजाओ

मन की वीणा के तार सजाओ
मन को सुन्दर भवन बनाओ

मन की व्याकुलता को जानो
इसमें प्रेम के पुष्प खिलाओ 




Monday 4 December 2017

मैं मुस्करा कर ही (ग़ज़ल)

मैं मुस्कुरा कर ही (ग़ज़ल)

मैं मुस्कुरा कर ही , काम चला लेता  हूँ
बड़ी - बड़ी खुशियों को , आम बना लेता हूँ

क्यों उत्सवों मैं , हम समय गंवाएं अपना
मैं रोगों के चेहरे पर मुस्कान लाकर ही , काम चला लेता हूँ

क्यों हम खुद को अहं के , समंदर में डुबोएं 
मैं खास मौंकों को आम बनाकर ही , काम चला लेता हूँ

'गमों के समंदर में भी , खुद को संभाल लेता हूँ
जिन्दगी के हर दौर को , खुदा की मर्जी मान काम चला लेता हूँ

क्यों गिले शिकवों में उलझ  कर , रह जाती है ये दुनिया
हर एक शख्स को खुदा का बन्दा समझ , मैं रिश्ते बना लेता हूँ

आज के इस दौर के गीतों में वो दर्द कहाँ
उस दौर को याद करके ही , अपने गम  भुला  लेता हूँ

अजब सी घुटन है , आज के माहौल में 
कहीं दूर नदी के तीर को , अपना साहिल बना लेता हूँ

'किस किसको सौचूँ, और किसको , भूल्र जाऊं मैं
अपनी कलम को ही अपने ग़मों में , हमसफ़र बना लेता हूँ




मैं चाहता हूँ , एक नए भारत का उदय हो

मैं चाहता हूँ एक नए भारत का उदय हो

मैं चाहता हूँ , एक नए भारत का उदय हो
जहां पले  घर - घर , संस्कार और संस्कृति हो

घर - घर में राम और लखन हों , दशरथ से पिता हों
माता हो केवल एक , कौशल्या सी मातृत्व की धनी हों

न हो कोई वनवास , मिलकर रहते सभी हों
रावण से मुक्त हो देश, कंस को न कहीं जगह हो

बच्चे भाई को भ्राता पुकारें ,  पिता को पिताश्री पुकारें
माँ के संबोधन में , दिल के तार सब जुड़े हों

गलियों में खेलें कान्हा , मटकी से खींचें माखन
मन में राम - राम हो, दिल कृष्ण - कृष्ण हों

पीर पराई हमारी हो जाए, हमारी खुशियाँ दूसरों के ग़मों
का हिस्सा हों
हर घर एक देवालय हो , हर घर एक मस्जिद हो


 गिर पड़े तो उठा ले कोई, रोये तो चुप करा दे कोई 

'एक ऐसे भारत का उदय हो, हर एक व्यक्तित्व शालीन हो


बह हर एक घर के आगे गंगा, भारत ऐसा एक नगर हो

माँ - बाप की सेवा हर एक का धर्म हो जाए, ऐसा भारत
बसर हो


चाणक्य से हों राजनीतिज्ञ , देश हित परम धर्म हो

घोटालों , भष्टाचारियों  , चापलूसों को न यहाँ जगह हो


हर एक दिल में हो देश प्रेम, देश हित मर मिटने का ज़ज्बा
हो

हर - गली हर - घर , हर एक दिल में वन्दे मातरम्‌ हो


मैं चाहता हूँ , एक नए भारत का उदय हो

जहां पले घर - घर ,  संस्कृति और संस्कार हों 






नज़रों के सामने से


नजरों के सामने से

नज़रों के सामने से मुस्कुरा के चल दिए , वो कुछ इस तरह
अपनी मुहब्बत का जाम , पिला के कुछ इस तरह

उनकी बेबाक अदाओं ने खींचा , हमे उनकी ओर कुछ इस तरह
अपनी अदाओं के जाल में कैद , कर रहे हों कुछ इस तरह

मुहब्बत की वेवाकियों का , हमें इल्म न था.
उनकी मुहब्बत के पाश में , हम फंसते गए कुछ इस तरह

मुहब्बत के अंजाम से नावाकिफ़ हो , बढ़े जा रहे थे हम कुछ इस तरह
एहसास तब हुआ जब जिन्दगी, आांसुओं का समंदर हो गयी कुछ इस तरह

उन चंद लम्हों को अपनी जिन्दगी का मकसद कर , जी रहे कुछ इस तरह
एक दिन तो क़यामत का आयेगा , जब रूवरू हंगे हम कद इस तरह

उनके हर एक सितम को , हमने अंजामे - मुहब्बत समझा
पाक इश्क की राह में तनहा , जिन्दगी गुजार रहे हैं हम कुछ इस तरह

नज़रों के सामने से मुस्कुरा के चल दिए , वो कुछ इस तरह
अपनी मुहब्बत का जाम , पिला के कुछ इस तरह

उनकी बेबाक अदाओं ने खींचा , हमे उनकी ओर कुछ इस तरह
अपनी अदाओं के जाल में कैद , कर रहे हों कुछ इस तरह





गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई

गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई

गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई
साज महफिल में मुहब्बत की , अब सजाता नहीं कोई

साँसों को महका दे वो संगीत , अब सजाता नहीं कोई
संस्कृति, संस्कारों से सुसज्जित , चलचित्र अब बनाता नहीं कोई

हर एक काम को कर लिया , लोगों ने अपना पेशा
इंसानियत की राह में , अब खुद को मिटाता नहीं कोई

भौतिकता और विलासिता से परिपूर्ण चरित्र, मानव मन को
लुभाने लगे हैं
आध्यात्म की राह में ,अब अपने पाँव जमाता नहीं कोई

गीत उस खुदा की इबादत के ,अब लिखता नहीं कोई
अपनी ही मुश्किलों में उलझा, दूसरों के ग़मों से रिश्ता बनाता
नहीं कोई

किसी की अँधेरी रातों में, उजाले का दीपक रोशन करता नहीं
कोई
खुदा की राह को , मकसदे - जिन्दगी बनाता नहीं कोई


द्झ के तन पर , अब कपड़ा दिखता नहीं कोई
बीच मझधार डूबते को , अब बचाने आता नहीं कोई

तन पर कपड़े नहीं , हाथों में कटोरा लिए , नज़र आ जाते
हैं चरित्र
'एक रुपये की मदद को , अपने पर्स तक हाथ बढ़ाता नहीं
कोई

दुःख के पहाड़ हर एक की , जिन्दगी का हो गए हिस्सा
वरना खुदा के दर पर , सजदा करने आता नहीं कोई

किसी को क्या सिला दें , किसी को क्या दें नसीहत
इन बेमानी रिश्तों में , अपना भी काम आता नहीं कोई

गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई
साज महफ़िल में मुहब्बत की , अब सजाता नहीं कोई




Wednesday 22 November 2017

हम गीतों में गुनगुनाएं चलो (ग़ज़ल)


हम गीतों में गुनगुनाएं चलो ( ग़ज़ल )

हम गीतों में गुनगुनाएं चलो
दो पल  को ही मुस्कराएं चल्रो

जिन्दगी को यूं न करें नासूर
किसी को दो पल  को हंसाएं चलो

गीतों मैं बंदगी का दिखे असर.
उस खुदा को मनाएं चलो  

किस्सा - ए - जिन्दगी को करें रोशन
इस जिन्दगी से रिश्ता बनाएं चलो

वक़्त ने दिए हैं गम बहुत
ग़मों को खुशियों का आइना दिखाएँ चलो

'छिलेंगे फू तेरी राहों में भी
किसी के सूने ऑँगन मैं दीपक जलाएं चलो 

ये आरजू हैं खुदा का करम हो हम पर.
किसी रोते को हंसाएं चलो

अनजान रिश्तों में भी ढूंढें प्यार की खुशबू
प्यार का एक खुशनुमा समंदर सजाएं चलो

हम गीतों में गुनगुनाएं चलो
दो पल  को ही मुस्कराएं चल्रो

जिन्दगी को यूं न करें नासूर
किसी को दो पल  को हंसाएं चलो



न जाने किसकी दुआओं का असर है मुझ पर

न  जाने किसकी दुआओं का , असर है मुझ पर

न जाने किसकी दुआओं का , असर है मुझ पर
समंदर की लहरों  के बीच भी , किनारा नसीब हो जाता है मुझे

न जाने किसके करम से , रोशन हुई लेखनी  मेरी
लिखता  हूँ न जाने क्या , खुदा की इबादत हो जाती है
.
न जाने किसके आशीर्वाद से , लिख रहा हूँ मैं
सोचता हूँ कुछ पंक्तियों , ग़ज़ल हो जाती हैं वो 

पाला हूँ दिल मैं प्यार , न जाने किसके करम से
दो मीठे बोल , चहरे पर मुस्कान दे जाती है

बो दिए हैं कुछ फूल , इस जहां में मैंने भी 
इनकी खुशबू , जिन्दगी रोशन कर जाती है

मुस्कुरा रहा  हूँ मैं , मुस्कराओ तुम भी
ये मुस्कराहट रोतों को भी , हँसा जाती है

चंद फूल  इंसानियत के , खिलाओ  तुम भी
ये हसरत हमें खुदा के , करीब ल्रे जाती है.

बीती बातों को दिल से , लगाकर  न रखना
ये जिन्दगी की खुशियाँ , हमसे छीन ले जाती हैं


खुद को खुद में ढूँढने की कोशिश (ग़ज़ल)

खुद को खुद में , टूँढने की कोशिश ( ग़ज़ल )

खुद को खुद में टूँढने की , कोशिश कर रहा हूँ मैं
इस उम्मीद से कि शायद , कुछ तो है मुझे

जिन्दगी की खुशबू का , शायद एहसास हो मुझमे
'खिलती हुई बहार शायद , कहीं आसपास हो मुझमे

गीत बनकर दिलों में उतर जाऊं, शायद ये ज़ज्बात हो मुझमें 
या ग़ज़ल बनकर रोशन हो जाऊं , शायद ये औकात हो मुझमे

एक आस की लौ ले खुद को ढूँढने की , कोशिश कर रहा हूँ मैं
इस उम्मीद से कि शायद , कुछ बात हो मुझमें 

लिखता  हूँ इस उम्मीद से कि शायद , भीतर कहीं एहसास हों मुझमे
किसी के दर का चराग हो जाऊं, शायद ये आस हो मुझमें

फूलों की पंखुड़ियों को निहारता हूँ , इस उम्मीद से मैं
फूलों की खुशबू सा कहीं , शायद अंदाज़ हो मुझमें

रिश्तों की डोर को इस उम्मीद से , पकड़े रहता हूँ मैं
'रिश्तों को निभाने के शायद , कहीं जज्बात हों मुझमें

खुद को खुद में ढूँढने की , कोशिश कर रहा हूँ मैं
इस उम्मीद से कि शायद , कुछ तो है मुझमे


कुर्सी को खुदा समझने वाले (व्यंग्य)

कुर्सी को खुदा समझने वाले

कुर्सी को खुदा समझने वाले
आदर्श कहाँ जिया करते हैं

राजनीति को धर्म समझने वाले
राष्ट्र धर्म की बात कहाँ करते हैं

पल - पल पार्टी बदलने वाले
कुर्सी पर ही मरने वाले

पल - पल विचार बदलने वाले
राष्ट्र हित की बात कहाँ करते हैं

जनता को मूर्ख समझने वाले
वादों पर ही जीने वाले

कुर्सी के हित जीने वाले
सामाजिकता की बात कहाँ करते हैं

मन मैं जहर घोलने वाले
अपराध जगत के ये रखवाले

सरहद पर मरने वालों को
सलाम कहाँ किया करते हैं



Saturday 18 November 2017

मानुषिक प्रवृत्तियों की निवृति में है आनंद

मानुषिक प्रवृत्तियों की निवृति में हैं आनंद

मानुषिक प्रवृत्तियों की निवृति में हैं आनंद
सुख - दुःख का मंथन और जीवन का अमृत

संवेदनाएं खोलतीं  सुख के द्वार
स्वयं पर कितना विश्वास और कितना आत्मविश्वास

समृद्धि और सुख का भीषण द्वंद
कर्म भी सुख का सूचक 

समर्पण और प्रेम , सुख का पर्याय
'तलाशिये सुख का एक बीज , अपने प्रयासों से

जितना बड़ा संघर्ष , उतना बड़ा सुख
सुख की सीढ़ियों का अंत नहीं

'फिर भी तलाश , एक मुट्ठी भर सुख की
है यहीं कहीं , हमारे आसपास

हमारी कोशिशों में , हमारे प्रयासों में
संवेदनाओं में , हमारे मानव प्रेम में

आओ खोजें उस सुख को , उस असीम सुख को
हमारे प्रयासों , हमारी कोशिशों की परिणति के रूप में




स्वच्छता ही सेवा है


स्वच्छता ही सेवा है

स्वच्छता ही सेवा है
आओ इसे अपनाएँ

गली और मुहल्लौं को
आओ रौशन बनाएं

गांधीजी के इस  सपने को
आओ अमली जामा पहनाएं

स्वच्छता ही सैव हैं
आओ इसे अपनाएँ

स्वच्छता की पावनता
हमारे स्वच्छ कर्मों में 

स्वच्छता की गूँज से
मनी - गमी महकाएं

स्वच्छता ही सेवा है 
आओ इसे अपनाएँ

आओ स्वच्छ भारत का
सपना साकार करें

प्रकृति की पावनता
आओ बरकरार रखें

स्वच्छता ही सेवा  है
आओ इसे अपनाएँ

स्वच्छता एक विचार है.
तन की पावनता का

स्वच्छता एक नारा नहीं
स्वच्छता पावनता है

स्वच्छता ही सैवा है
आओ इसे अपनाएँ






Monday 9 October 2017

मुक्तक

१.

जिन्दगी में कुछ के , ऐसे भी आते हैं 

दे जाते हैं कुछ सिला, जिन्दगी संवार जाते हैं

२.


कुछ  प्रयास तुम करो , कुछ प्रयास
मैं करूं

चलो इस जहां को . महब्बत का
सिला दे चले


3.

किसी की तनहा रातों को , दो पल
की ख़ुशी अता कर देख

तेरे इस प्रयास और तुझ पर होगा
उस खुदा का करम

4.


सका एक सच्चे दोस्त की, कर रहा
हूँ मैं

खुद को हर एक रोज मुसीबतों के
समंदर में, धकेल रहा हूँ मैं


5.

फूल पत्तों से दो पल  के लिए ही
सही, बात कर देखो

जिन्दगी के थपेड़ों से लड़ने का,
सिला मिलेगा तुझको



Wednesday 20 September 2017

तुझे मैं अपने गीतों में ढाल लूं तो चैन आये मुझे

तुझे मैं अपने गीतों में ढाल लूं तो चैन आये मुझे

तुझे मैं अपने गीतों में ढाल लूं , तो चैन आये मुझे
मैं तुझको अपना बना लूं , तो चैन आये मुझे

मैं जानता हूँ , तुझे फ़िक् है हर पल की
अपने आशियाँ को तेरी इबादतगाह बना लूं , तो चैन आये मुझे


कल ही ख्वाव में रूबरू हुआ था , मैं तुझसे
'पती स्लातगाह को तेरी उतादतगाह बना से , तो चैन आये मुझे 
  
तेरे करम से रोशन हुआ हूँ मैं , ए मेरे खुदा
खुद को तुझ पर लुटा दूं , तो चैन आये मुझे

सभी कहते हैं इस जहां के हर एक बन्दे के दिल में , वसता है तू
तेरे हर एक बन्दे में तेरे अश्क़ का दीदार कर लूं , तो चैन आये मुझे

खुद को तेरे दर का चराग करने की रही , बरसों तमन्ना मेरी
खुद को तेरे दर का चराग कर लूं , तो चैन आये मुझे

मेरी कोशिशों , मेरे प्रयासों पर , तेरा करम बना रहे मेरे खुदा
अपनी हर एक कोशिश को तेरी इवादत कर लूं., तो चैन आये मुझे

तुझे मैं अपने गीतों में ढाल लूं , तो चैन आये मुझे
मैं तुझको अपना बना लूं , तो चैन आये मुझे

मैं जानता हूँ , तुझे फ़िक् है हर पल की
अपने आशियाँ को तेरी इबादतगाह बना लूं , तो चैन आये मुझे







ग़मों और मुसीबतों के इस दौर में भी

ग़मों और मुसीबतों के इस दौर में भी

ग़मों और मुसीबतों के ,इस दौर में भी
खुश रहने के ,सौ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

जब भी खुद से ,रूठ जाता हूँ मैं
खुद को मनाने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

उस खुदा की इस ,अनजान दुनिया में
लोगों को दिल के करीब लाने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

न जाने क्यों कर हो रहे लोग, एक दूसरे से दूर
'रिश्तों को जीने के ,सौ बहाने ढूंढ लेत हूँ मैं

मुसीबतों के दौर मैं में ही ,याद आता है खुदा उनको
अपनी खुशियाँ उस खुदा के बन्दों से बांटने के , सौ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

लोग फेर लेते हैं नज़र , न जाने क्यों अपनों से भी
'परायों को भी दिल से लगाने के , सौ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

क्यों कर कोई स्ठे , इस जिन्दगी से
जिन्दगी को जिन्दादिली से जीने के , सौँ बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

ग़मों और मुसीबतों के ,इस दौर में भी
खुश रहने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं

जब भी खुद से ,रूठ  जाता हूँ मैं
खुद को मनाने के ,सौं बहाने ढूंढ लेता हूँ मैं




जब भी उदास होता हूँ मैं

जब भी उदास होता हूँ मैं

जब भी उदास, होता हूँ मैं
खुद को मुस्कराहट के समंदर में , डुबो लेता हूँ मैं

जब भी अपनों से, बेज़ार हो जाता हूँ मैं
खुद को नए रिश्तों में ,पिरो लेता हूँ मैं

इस फीकी - फीकी दुनिया में , मन जब नहीं लगता मेरा
किसी सरिता के तीर , दो चार गीत गुनगुना लेता हूँ मैं 

प्रकृति के आँचल में कांटे, लोगों ने बो दिए हैं बहुत
नन्हे पौधों से बात कर , खुद को बहला लेता हूँ मैं

चादुकारिता की बातें करते देखे हैं, मैंने कवि बहुत
बालपन को संवारने की ,कवितायें गुनगुना लेता हूँ मैं

लोगों को खुश करने के लोग, ढूंढ लेते हैं बहाने बहुत
बच्चों को खुश करने के , तरीके इजाद कर लेता हूँ मैं

मेरी बात किसी को ,जो बुरी लग जाए.
परवाह किये बिना दो चार और , कवितायें लिख देता हूँ मैं

लोग अपने दामन के फूलों की , खुशबू मे हैं व्यस्त
लोगों के दामन को , खुशबू से भर देता हूँ मैं

जब भी उदास, होता हूँ मैं
खुद को मुस्कराहट के समंदर में , डुबो लेता हूँ मैं

जब भी अपनों से, बेज़ार हो जाता हूँ मैं
खुद को नए रिश्तों में ,पिरो लेता हूँ मैं







एक दिन तुम्हें मेरी याद सताएगी

एक दिन तुम्हें , मेरी  याद सताएगी

एक दिन तुम्हें , मेरी याद सताएगी
तुम मुझे , अपने करीब पाओगी

बीती बातें कुछ हद तक , तुम्हें रुलायेंगी 
तुम मुझे अपने, दिल के आसपास पाओगी 

तनहा रहना होता है कितना मुश्किल , ये पूछो खुद से 
दिल से याद करोगी तो, हर एक रात रोशन हो जायेगी 

यूं ही न बहाओ, अपनी आँखों से मोती 
दिल को दिल से होती है आस, जांन जाओगी 

मुहब्बत के चाहने वालों पर होता है, उस खुदा का करम 
आज नहीं तो कल , मेरी बाहों में समा  जाओगी 

अपने इस एहसासे  - मुहब्बत को कम नहीं होने देना 
एक दिन तुम भी मुहब्बत के गीत गाओगी 

पाक दामन से रोशन रहे ये मुहब्बत का जूनून 
गीत मेरी वफ़ा के भी , एक दिल गुनगुनाओगी 

खुश होंगे चाँद तारे, सितारे और ये फिजां 
जब तुम मेरे आशियाँ का चाँद हो जाओगी 

एक दिन तुम्हें , मेरी  याद सताएगी
तुम मुझे , अपने करीब पाओगी

बीती बातें कुछ हद तक , तुम्हें रुलायेंगी 
तुम मुझे अपने, दिल के आसपास पाओगी